सारिका भाग -9 की कहानी (kahani)

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क घंटे के अंदर दोनों नहा कर तैयार हो गए और समय हो गया था दोपहर के 12:00 । {आप पढ़ रहे हैं सारिका भाग -9 की कहानी (kahani)} सारिका बोली, हरि यार पहले तो किसी भोजनालय में जाकर खाना खाते हैं..बहुत भूख लग रही है। दोनों पास के ही एक भोजनालय में जाकर बैठ गए। वेटर ने पूछा, sir.. क्या खाना पसंद करेंगे? सारिका तपाक से बोली, क्या इस वक्त परांठा मिल सकता है? वेटर बोला, जी बिल्कुल मिल सकता है। सारिका बोली, तो जल्दी से 4 प्याज वाले परांठे ले आइए। वेटर बोला, मैडम..प्याज वाले परांठे में लगभग 15 मिनिट लग जाएंगे। सारिका बोली, आप ले आओ..बस थोड़ा जल्दी बनाना..हमको घूमने जाना है और फिर शाम को समय रहते वापिस भी आना है। वेटर यह सब सुनकर चला गया। हरि ने पूछा, शाम को आने की इतनी जल्दी क्यों है मोहतरमा। सारिका ने बताया, यार हरि..सुबह को एक मेल आया है मेरे पास.. कुछ काम निपटा कर send करना है.. दो दिन से pending पड़ा था।

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थोड़ा चुप रहकर हरि ने कहा, तो कल रात इतनी पीने की क्या जरूरत थी..कल रात ही निपटा देती..आज पी लेती मन भर कर।  सारिका बोली, अरे छोड़ो न यार..बोला तो था तुमको कि तुम्हारे साथ रहकर अच्छा महसूस हो रहा था..इसलिए पूरी तरह से तुम्हारे साथ रहना चाहती थी बस। हरि बोला, तो आज घूमना रद्द कर देते है..तुम दिन में अपना काम पूरा कर लो। सारिका ने बताया, हरि..मुझे नहीं पता था कि तुम मुझे ऋषिकेश से मैकलोडगंज के सफर में मिल जाओगे वरना कोई भी नया काम नहीं लेती..मुझे लगा था कि 2 दिन में निपटा दूंगी..लेकिन पिछले दो दिन तुम्हारे साथ गुजरे और आज का दिन भी हम साथ साथ ही रहेंगे..शाम को जल्दी आ जायेंगे..रात को मैं काम निपटा दूंगी..तुम Tension मत लो यार। तभी वेटर परांठे देकर चला गया। सारिका बोली, यार हरि..वर्तमान में जियो और इस वक्त तो सामने परांठे रखे हैं और मुझे लगी है भूख..तुम खा लोगे या फिर मैं अपने हाथों से खिलाऊं? हरि बोला, अरे please यार सारिका यहां शुरू मत हो जाना..कमरे में तो जो तुम बोलती हो वो मैं कर देता हूं..पर यहां नहीं। तभी हरि को सारिका का चेहरा गंभीर होता दिखाई दिया।


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सारिका ने परांठे का एक छोटा सा टुकड़ा तोड़ और हरि के मुंह की तरफ करते हुए कहा, ये लो जानू खाओ। हरि भी एकदम गंभीर हो गया और बोला, सारिका..सब देख रहे हैं..मैं अपने आप खा लूंगा। हरि ने सारिका के चेहरे पर ये गंभीर भाव पहले नहीं देखे थे। सारिका बोली, हरि..तुमको अगर मेरे प्रेम पर शक है तो मैं बाहर बीच बाजार में चिल्ला कर बोल सकती हूं कि सारिका हरि को चाहती है..लेकिन तुमको किस का डर सता रहा है..जिसको देखना है देखने दो..मैं तुम्हारी हूं..मुझ पर केंद्रित रहो..औरों की और ध्यान क्यों दे रहे हो..हरि तुमने अगर मेरे हाथों से अभी नहीं खाया तो फिर कभी नहीं खा सकोगे..क्योंकि मैं अभी इसी वक्त तुमको छोड़ कर चली जाऊंगी..ऐसे इंसान के पास रह कर क्या करूंगी जो मेरी नहीं बल्कि लोगों की फिक्र करता है..ये लो अच्छे बच्चे की तरह खाओ। हरि बेचारा क्या करता, उसको तो सारिका के चेहरे में चंडी के दर्शन हो रहे थे और वो सारिका को खोना भी नहीं चाहता था। उसने सारिका के हाथों से खाना शुरू किया। सारिका खुद भी खाती रही और हरि को भी खिलाती रही। कुछ आस पास के लोग उन दोनों की तरफ देख रहे थे। तभी सारिका ने उनमें से एक बूढ़े की तरफ देखा और बोली, देखा अंकल जी..कितना चाहती हूं इसको मैं और ये है कि लोगों की परवाह कर रहा है। तभी उनकी तरफ देखने वाली नज़रे अपने अपने काम में व्यस्त हैं, ऐसा दिखने लगे।


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परांठे खिलाकर भी सारिका अभी तृप्त नहीं हुई थी। हरि बोला, मैं बिल भुगतान करके आता हूं। सारिका बोली रुको..आज मैं बिल का भुगतान करूंगी। सारिका ने अपने बैग से अपना रुमाल निकाला और हरि के होठों को साफ करते हुए बोली, बेबी..परांठे खाकर होठ चिकने हो गए थे..अब साफ हो गए। फिर सारिका गई रिसेप्शन पर और बिल का भुगतान किया और हरि को बोली, डार्लिंग..अब घूमने चलते हैं। हरि चुप चाप सारिका के साथ हो लिया। भोजनालय के बाहर आकर सारिका ने हरि से पूछा, जानू..आज कहां घूमने जाएं..ज्यादा दूर नहीं जा सकते..ऐसी जगह चलो जहां से 3 या 4 घंटे में वापिसी हो सके। हरि शांत सी आवाज़ में बोला, 3 किलोमीटर की दूरी पर भागशुग नाग झरना है..अगर इच्छा हो तो वहीं चलते हैं। सारिका एकदम ऊर्जावान सी होकर बोली, हरि..तुम जो भी चाहो वो करो..मैं तुम्हारे साथ हूं..बस मुझसे नाराज़ मत रहो..तुम लोगों के बारे में अभी भी सोच रहे हो और मैं अभी भी सिर्फ तुम्हारे बारे में सोच रही हूं..तुमको जिंदगी खुलकर जीनी चाहिए..दूसरों के बारे में सोच सोच कर नहीं..और फिर मैने ऐसा तो कोई अपराध नहीं किया कि तुम नाराज़ हो जाओ..सिर्फ तुमको अपने हाथों से खिलाया ही तो है..चलो मुझे झरना दिखा कर लाओ।


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हरि जानता था कि सारिका एकदम सही बोल रही है लेकिन वो सारिका की मर्ज़ी को हवा नहीं देना चाहता था क्योंकि वो जनता था कि अगर उसने सारिका को पूरी छूट दे दी तो वो कुछ भी कर सकती है और वो भी बिना सोचे समझे। हरि और सारिका भागशूग नाग झरना देखने के लिए उस पथ पर चल दिए। सारिका शांत ही चल रही थी। हरि को सारिका की उदासी खल रही थी तो उसने सारिका के हाथ की उंगलियों में अपने हाथ की उंगलियां डाली और सारिका के साथ साथ शांत चलने लगा। तभी सारिका का शरारती मिजाज़ फिर से जाग गया और वो बोली, क्या बात है मेरे शेर..लगता है मेरा रंग थोड़ा थोड़ा तुम पर चढ़ने लगा है। हरि मुस्कुराते हुए बोला, तुम अपनी शरारतों से बाज़ कभी नहीं आओगी सारिका..लेकिन तुम जब शांत होकर मेरे साथ चल रही थी तो तुम्हारी उदासी मुझे पसंद नहीं आई..मुझे तो ये शरारती सारिका ही पसंद है। सारिका फिर से शरारती अंदाज में बोली, बस तुम देखते जाओ..अगर सारिका का जादू हरि के सिर चढ़ कर न बोला तो मेरा नाम भी सारिका नहीं। दोनों बातें करते करते झरने के पास पहुंच गए। ठंड होने के कारण वहां पर पर्यटन ज्यादा नहीं था।


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थोड़ा वहीं आसपास घूमे और एक एक चाय पीने के बाद हरि ने सारिका से पूछा, अब वापिस कमरे पर चलें क्या? सारिका बोली, जनाब मर्ज़ी आपकी है..मैं तो आपके साथ हूं। हरि ने सारिका से पूछा कि घूमते फिरते ही वापिस चलेगी या फिर ऑटो रिक्शा में जाना पसंद करोगी? सारिका बोली, थकान तो महसूस हो रही है और रस्ते में ऐसा कुछ खास है भी नहीं कि दुबारा वहां घूमना चाहें..तो ऑटो रिक्शा में ही वापिस चलते हैं। वहीं से एक ऑटो रिक्शा में दोनों बैठें और अपने होटल के पास ही उतर गए। कमरे के अंदर आकर सारिका एकदम निढाल सी होकर बेड पर लेट गई। हरि भी बिस्तर के एक तरफ कंबल में बैठ गया। सारिका सिरहाने बैठ कर टांगे फैलाते हुए बोली, बेबी..थोड़ी देर के लिए मेरी गोद में आ जाओ प्लीज। हरि अच्छे बच्चे के जैसे चुप चाप उसकी गोद में सिर रख कर लेट गया। 

नोट - कहानी (Kahani) जारी रहेगी..


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