घूमते फिरते सारिका और हरि दलाई लामा मंदिर के पास पहुंच गए। {आप पढ़ रहे हैं सारिका भाग -6 की कहानी (Kahani)} मंदिर के अंदर उस वक्त किसी पर्यटक को जाने नहीं दे रहे थे। मंदिर के बाहर ही एक रेस्टोरेंट देख कर सारिका बोली, हरि..चाय पीने की इच्छा है। हरि बोला, इच्छा तो मुझे भी महसूस हो रही है लेकिन चाय की नहीं। तभी सारिका बोली, तो किस चीज का मूड है ज़नाब? कॉफी का, हरि ने उत्तर दिया। सारिका बोली, तो चलो..मैं भी कॉफी ही पियूंगी अब तो। रेस्टोरेंट के अंदर बैठकर हरि ने वेटर को 2 कॉफी बनाने के लिए बोला। फिर दोनों एकदम से चुप बैठे रहे। उस चुप्पी को वेटर ने कॉफी लाकर तोड़ा।
कॉफी की एक चुस्की लेकर सारिका एकदम से बोली, कॉफी अच्छी बनाई है जिसने भी बनाई है। इसपर हरि ने भी हामी भर दी। कॉफी पीते पीते सारिका ने पूछा, हरि..तुम भगवान में विश्वाश करते हो क्या? हरि बोला, मैं विश्वाश और शक से परे सोचता हूं..विश्वाश करने के लिए मुझे मान्यता की नहीं सबूत की जरूरत होती है। सारिका ने पूछा, तो क्या तुमको अभी तक परमात्मा के होने का सबूत नहीं मिला? हरि बोला, नहीं अभी तक तो नहीं..लेकिन मुझे एक चीज पर विश्वास होने लगा है। तभी सारिका ने पूछा, और वो कौन सी चीज है जिसपर तुमको विश्वाश होने लगा है? यही की डायन असल में होती हैं, मुस्कुराते हुए हरि बोला। सारिका शरारती सा मुंह बनाते हुए बोली, बच्चू डायन के अस्तित्व पर विश्वाश हो गया है तो ये भी जान लो कि जो व्यक्ति डायन को देख लेता है..डायन उसको खा जाती है..और तुमको तो डायन जरूर खाएगी।
कॉफी की आखिरी घूंट भरते हुए हरि बोला, अरे यार..खफा मत हो..मजाक कर रहा था। तभी सारिका बोली, लेकिन मैं मजाक नहीं कर रही..तुमको खा जाऊंगी..देख लेना। मुस्कुराते हुए हरि बोला, ठीक है खा जाना..लेकिन अभी यहां से चलते हैं..थोड़ा और घूम कर फिर होटल में जायेंगे। हरि ने कॉफी के पैसे और दोनों वहां से चल दिए। दलाई लामा मंदिर की सीमा से बाहर आते ही उन्होंने कुछ महिलाओं को जो कि बौद्ध भिक्षुणी के जैसी दिख रही थी, को एक सुनसान से रस्ते पर जाते देखा। हरि ने पास से जाते एक व्यक्ति से पूछा कि ये रास्ता कहां जाता है? व्यक्ति बोला कि ये दलाई लामा मंदिर की परिक्रमा का रास्ता है जो कि मंदिर के चारों तरफ लगभग 2 किलो मीटर की दूरी का है तथा दूसरी तरफ से बाहर निकलता है, इतना कहकर वो व्यक्ति चल गया।
सारिका ने हरि की आंखों में देख कर सिर्फ एक ही बात बोली, उस रस्ते पर चलें? हरि बिना कुछ बोले उस रस्ते की और चल दिया। थोड़ा सा चलकर उनको कुछ नोटिस बोर्ड दिखाई दिए जिनपर उस रस्ते के बारे में लिखा था। थोड़ी थोड़ी दूरी पर कुछ गोलाकार चक्रीनुमा चक्र कतारबद्ध दीवार में चिन्हित थे, इनको धर्म चक्र कहते हैं। सारिका इन चक्री को एक छोटी बच्ची की तरह अपने दाएं हाथ से घूमती हुई चल रही थी। सारिका ने पीछे मुड़ कर देखा और हरि का हाथ पकड़कर एक धर्म चक्र पर रख दिया और बोली, घुमाते हुए मेरे पीछे पीछे चलो। सारिका चक्रों को घूमते हुए हरि के आगे आगे चल रही थी और साथ ही साथ बता रही थी कि ये पवित्र चक्र हैं..इनपर पवित्र मंत्र चिन्हित हैं..इनको घुमाते हुए चलने से जीवन पवित्र होता है। हरि चुप चाप सारिका को सुनते हुए उसके पीछे चलता गया।
रास्ता के एक और जंगल जैसा अनुभव हो रहा था और दूसरी और दलाई लामा मंदिर का विस्तार पता चल रहा था। मंदिर की परिक्रमा रस्ते के दूसरी और से पूरी हुई। हरि का साथ पकड़ते हुए सारिका बोली, अब होटल चलते हैं..थोड़ा आराम कर के फिर से बाहर आ जाएंगे रात का खाना खाने के लिए। सारिका के हाथ के स्पर्श से हरि को ये तो पता चल गया था कि सारिका उसको पसंद करने लगी है लेकिन हरि ने किसी पर भी जल्दी से विश्वास करना नहीं सीखा था। होटल के कमरे में पहुंच कर सारिका बिस्तर पर लेट गई और हरि से बोली, हरि यार..एक चाय पिला दो..थकान महसूस हो रही है। हरि बोला, ठीक है...मैं रिसेप्शन पर 2 चाय बोल कर आता हूं। रिसेप्शन पर चाय के लिए बोलकर हरि कमरे आया तो देखा कि अपना लैपटॉप लेकर बैठी है। हरि को देख कर सारिका बोली, हरि..मेरे साथ लैपटॉप पर कोई मूवी देखोगे क्या? हरि बोला कि मैं फिल्म देखता तो जरूर हूं लेकिन मेरी मनपसंद फिल्में ज्यादातर दूसरों को पसंद नहीं होती। इसपर सारिका लैपटॉप को हरि की तरफ सरकाते हुए बोली, ये लो..अपनी मनपसंद फिल्म सर्च करो..मैं भी तो देखूं कि तुम देखते क्या हो।
हरि बोला, मुझे लैपटॉप चलना नहीं आता। सारिका बोली, कोई बात नहीं मैं सीखा दूंगी..चलो अपनी मनपसंद फिल्म का नाम बताओ..मैं सर्च करती हूं। हरि बोला कि एक फिल्म है अजय देवगन और ऐश्वर्या राय की..नाम है रेनकोट (Raincoat).. उसका एक दिन trailor देखा था लेकिन जब यूट्यूब पर सर्च किया तो वो PAID मूवी थी। तभी सारिका बोली, अरे यार तुमने फिल्म का नाम बता दिया बस वोही काफी है..अब मैं जानू और मेरा काम। तभी किसी ने कमरे का दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खोलकर देख तो रिसेप्शन वाला लड़का दो चाय लेकर खड़ा था। हरि ने चाय ली और एक चाय सारिका की तरफ वाली टेबल पर रख दी। सारिका बोली, हरि अपने जूते उतरो और मेरे पास आकर अपनी मनपसंद फिल्म देखो। हरि सारिका से थोड़ी सी दूरी बनाकर हाथ में चाय का कप ले कर बेड के सिरहाने बैठ गया। तभी सारिका अपना चाय का कप लेकर हरि की तरफ करीब होकर बैठते हुए बोली, चिंता मत करो..अभी डायन को भूख नहीं लगी..तुमको खाऊंगी नहीं..तुम मेरे पास बैठ सकते हो। हरि मुस्कुराते हुए बोला, अरे वो बात नहीं है। तो क्या बात है, सारिका ने पूछा? सारिका बोली, अरे तुमको मेरे साथ रहना पसंद नहीं आया तो मैं अभी अपना बैग पैक करके दूसरे होटल में जा सकती हूं..यहां पर इसलिए हूं कि तुम मुझे पसंद हो..देहरादून के सिगरेट के कश से लेकर अब तक..और तुम्हारे मन में जो भी है वो तुम मुझे बेझिझक बता सकते हो।
एक लम्हा शांत रहकर हरि सारिका के साथ बिल्कुल करीब खिसक कर चाय पीने लगा। फिल्म चालू हो चुकी थी। दोनों ने चाय खत्म की और फिल्म देखने लगे। चुप्पी तोड़ते हुए सारिका बोली, मेरी गोद में लेट कर फिल्म देखोगे क्या? हरि बोला, मैं सिर्फ एक ही लड़की का होकर रहना चाहता हूं..अगर तुमको लगता है कि तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी तो मेरे करीब मत आओ। सारिका ने उसका सर पकड़कर अपनी गोद में रखा और बोली, आराम से लेट जाओ.. सब कुछ भूल कर सिर्फ अपनी मनपसंद फिल्म देखो..मैं तुमको छोड़ कर कभी नहीं जाऊंगी..तुम एक अदभुत इंसान हो हरि..हर लड़की को तुम्हारे जैसा पुरुष नहीं मिलता। सारिका गोद में लेटे हुए हरि के सर में हल्के हाथों से मालिश कर रही थी। हरि को फिल्म देखते देखते कब नींद आ गई उसको पता भी नहीं चल।
नोट- कहानी (kahani) जारी रहेगी...
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