बचपन का ख्वाब या हकीकत | कहानी (Kahani)

बचपन का ख्वाब या हकीकत, Bachpan ka khwaab, कहानी, Kahani, Hindi365, Hindi
ये कहानी (Kahani)है विनोद की। विनोद अपने बचपन की एक याद को बताते हुए कहता है कि उसे बचपन में अक्सर एक स्वपन दिखाई पड़ता था। जो की कुछ महीनों के बाद उसे दिखाई पड़ता था और जवानी तक ये ख्वाब उसको दिखता रहा। हमारी आज की कहानी इसी स्वपन और हकीकत के बीच छिपी हुई एक दास्तान है। कहानी का शीर्षक है, एक डरावना ख्वाब।

विनोद ने बताया, बचपन की एक उम्र से उसको वो ख्वाब दिखना शुरू हुआ। उम्र तो उसको अच्छी तरह से याद नहीं। उसने बताया कि वो ख्वाब आधी हकीकत और आधा स्वप्न जैसा लगता था। ख्वाब जैसे ही शुरू होता, एक डरावने चहरे वाली कोई औरत उसके घर के बाहर घूम रही होती थी। कुछ लम्हे बाहर घूमने के बाद वो बंद दरवाजे के आर-पार निकल कर घर के अंदर परवेश कर जाती। उसके बाद वो औरत विनोद की खाट (bed) ke चारों ओर 1-2 चक्कर लगाती और विनोद की पीठ के पीछे आकर लेट जाती। विनोद ने बताया कि पीठ पीछे लेटने तक तो उसे सब दिखाई देता था ख्वाब में, लेकिन जैसे ही वो औरत विनोद की पीठ पीछे लेटती, विनोद एकदम से बेहोश सा हो जाता था या फिर गहरी नींद में सो जाता, ये विनोद को भी नही पता। विनोद की नींद तब खुलती थी या फिर कहें कि इसकी चेतना तब वापिस आती थी जब वो औरत उसके पीछे से उठती और वापिस बाहर चली जाती। उस औरत के लेटने से लेकर उसके उठने तक विनोद को कुछ याद नहीं रहता था।

बचपन का ख्वाब या हकीकत, Bachpan ka khwaab, कहानी, Kahani, Hindi365, Hindi

ये ख्वाब ऐसे ही चलता रहा। लगभग 6 या 7 महिनों में एक बार ये ख्वाब दिखाई देता था। अब कुछ समय बाद विनोद की उम्र भी बढ़नी थी। विनोद अब ध्यान में रूचि लेने लगा था। एक गुरु की किताबे पढ़ना और प्रवचन सुनना उसे बेहद पसंद था। उसी के प्रवचन सुनकर उसने ध्यान शुरू किया। 1-2 इसके जैसे मित्र भी उसे मिल गए, जोकि ध्यान कार्यक्रम में जा चुके थे। उन दोस्तों ने भी उसे ध्यान के बारे में बहुत कुछ सिखाया। विनोद सुबह से शाम टेक के सभी कामों में ध्यान की कोई न कोई विधि लागू करता रहता था।


एक बार वो अपने कमरे में सोया हुआ था और वो ख्वाब फिर से शुरू हो गया। वो डरावनी औरत पहले तो घर के बाहर घूमी, फिर बंद दरवाजे के पार होती हुई घर में आई, अब वो विनोद की खाट (bed) ke चारों और चक्कर लगाने लगी। अब विनोद को ये अच्छी तरह से पता था की उसके पीठ पीछे लेटते ही विनोद अचेतन हो जाएगा। जैसे ही वो औरत विनोद की पीठ पीछे लेटी, विनोद ने अपनी पूरी ताकत लगाई और एकदम से खड़ा हो गया। खाट के पास खड़ा हुआ विनोद चारों और देख रहा था लेकिन वहां कोई नही था। विनोद ने बताया कि उस रात के बाद वो ख्वाब कभी नही आया।

दोस्तों आप इस कहानी (Kahani) को पढ़ कर क्या सोचते हैं? वो ख्वाब था या फिर विनोद से जुड़ी हुई कोई हकीकत। यदि आपको इसके बारे में कुछ पता है तो comment box में जरूर बताएं, धन्यवाद।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ